श्राद्ध पर्व मे कौवे को भोजन कराने से पितर तृप्त होते हैं।
पितृपक्ष में कौओं को भोजन देने का विशेष महत्व होता है। कौआ यमराज का प्रतीक माना जाता है। एक वर्ष तक तो कौवे का कांव-कांव करना किसी को अच्छा नहीं लगता है लेकिन श्राद्ध पर्व में लोग कौवे को बुलाकर भोजन कराना पुण्य का काम समझते हैं ।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि कौआ आपके श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर लेता है, तो आपके पितर आपसे प्रसन्न और तृप्त माने जाते हैं। यदि कौआ भोजन नहीं करता है तो इसका अर्थ है कि आपके पितर आपसे नाराज और अतृप्त हैं।
16 दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं। कौए एवं पीपल को पितृ प्रतीक माना जाता है। इन दिनों कौए को खाना खिलाकर एवं पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कौओं को देवपुत्र माना जाता है। व्यक्ति जब शरीर का त्याग करता है और उसके प्राण निकल जाते हैं तो वह सबसे पहले कौआ का जन्म पाता है। माना जाता है कि कौआ का किया गया भोजन पितरों को ही प्राप्त होता है।
कौआ अतिथि के आने की सूचना देने वाला तथा पितरों का आश्रम स्थल माना गया है। ऐसी भी मान्यता है कि कौआ ने अमृत का पान कर लिया था, जिससे उसकी स्वाभाविक मौत नहीं होती है।
त्रेता युग की घटना
कौए को भगवान राम ने दिया था आशीर्वाद
एक बार एक कौए ने माता सीता के पैर में चोंच मार दी। तब भगवान राम ने तिनके का बाण चलाया, जिससे उसकी एक आंख फूट गई। इस पर उसे अपने किए का पश्चाताप हुआ और उसने माफी मांगी। तब भगवान राम ने उसे आशीर्वाद दिया कि तुम को खिलाया गया भोजन पितरों को प्राप्त होगा। तब से पितृपक्ष में कौओं को भी श्राद्ध के भोजन का एक अंश दिया जाने लगा।
माता सीता के पैर में चोंच मारने वाला कौआ देवराज इन्द्र के पुत्र जयन्त थे। जिन्होंने कौए का रूप धारण किया था। यह कथा त्रेतायुग की है, जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारा था।
कौआ एक ऐसा पक्षी है, जिसे किसी भी घटना का पहले ही आभास हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि कोई भी क्षमतावान आत्मा एक कौआ के शरीर में प्रवेश करके कहीं भी भ्रमण कर सकती है।
श्राद्ध में कौए या कौवे को छत पर जाकर अन्न जल देना बहुत ही पुण्य का कार्य है। माना जाता है कि हमारे पितृ कौए के रूप में आकर श्राद्ध का अन्न ग्रहण करते हैं। इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है।
श्राद्ध पक्ष में कौवे का महत्व
कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है।
पुराणों की एक कथा के अनुसार पक्षी ने अमृत का स्वाद चख लिया था इसलिए मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती। कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है।
जिस दिन किसी कौए की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। कौआ अकेले में भी भोजन कभी नहीं खाता, वह किसी साथी के साथ ही मिल-बांटकर भोजन ग्रहण करता है।
कौए को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाता है।
शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है।
कौए को भोजन कराने से सभी तरह का पितृ और कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
कौआ लगभग 20 इंच लंबा, गहरे काले रंग का पक्षी है जिसके नर और मादा एक ही जैसे होते हैं।
कौआ बगैर थके मीलों उड़ सकता है।
सफेद कौआ भी होता है लेकिन वह बहुत ही दुर्लभ है।
श्राद्ध पक्ष मे पितर यम लोक से 16 दिनों के लिए धरती पर आते हैं। साल में ये विशेष दिन होते हैं, जब आप अपने पितरों को सम्मान देकर उनका ऋण उतारने की कोशिश करते हैं। उन्होंने आपको इस जीवन में लाकर जो उपकार किया है, उसके प्रति श्रद्धा प्रकट करने का यह त्योहार है।
श्राद्ध को तीन पीढ़ियों तक करने का विधान है। मान्यता है कि हर साल इन दिनों श्राद्ध पक्ष में सभी जीव परलोक से मुक्त होते हैं, जिनसे वे स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। तीन पूर्वजों में पिता को वसु के समान, दादा को रुद्र देवता के समान और परदादा को आदित्य देवता के समान माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
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